भारत और समकालीन विश्व 2 कक्षा 10 Question answer Chapter 2,
NCERT कक्षा 10 पाठ 2 भारत में राष्ट्रवाद ke sabhi prashno utter ,
class 10 social science chapter 2 question answer.
अध्याय 2
★ भारत में राष्ट्रवाद ★
◆महत्वपूर्ण बिंदु
● भारत में आधुनिक राष्ट्रवाद के उदय की परिघटना उपनिवेशवाद विरोधी आन्दोलन के साथ गहरे तौर पर जुड़ी हुई थी।
● 1919 से बाद के सालों में राष्ट्रीय आंदोलन नए इलाकों तक फैल गया था।
● 1918-19 और 1920-21 में देश के बहुत सारे हिस्सों में फसल खराब हो गई थी।
● 1921 की जनगणना के मुताबिक दुर्भिक्ष (अकाल) और महामारी के कारण 120-130 लाख लोग मारे गए।
● जनवरी 1915 को महात्मा गाँधी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे।
● 1917 में उन्होंने बिहार के चंपारन एवं गुजरात के खेड़ा जिले के किसानों की मदद के लिए सत्याग्रह किया।
● 13 अप्रैल को जनरल डायर ने निहत्थे लोगों को जलियाँवाला बाग में मार डाला।
● असहयोग एवं खिलाफत आंदोलन जनवरी 1921 में शुरू हुए।
● आंदोलन की शुरूआत शहरी मध्यवर्ग की हिस्सेदारी के साथ हुई।
● हजारों विद्यार्थियों ने स्कूल-कॉलेज छोड़ दिए।
● आंदोलन के कारण विदेशी कपड़ों का आयात आधा रह गया था। शहरों से बढ़कर असहयोग आंदोलन देहात में भी फैल गया था।
● असहयोग आंदोलन में अवध में संन्यासी बाबा रामचंद्र किसानों का नेतृत्व कर रहे थे।
● आंध्रप्रदेश की गुडेम पहाड़ियों में क्रांतिकारियों का नेतृत्व अल्लूरी सीताराम राजू कर रहे थे जिन्हें 1924 में फाँसी दे दी गई।
● चौरी-चौरा के हिंसक टकराव के बाद फरवरी 1922 में महात्मा गाँधी ने असहयोग आंदोलन वापस लेने का फैसला कर लिया।
● 1926 से कृषि उत्पादों की कीमतें गिरने लगीं थीं। 1930 तक ग्रामीण इलाके भारी उथल पुथल से गुजरने लगे थे।
● 1928 में साइमन कमीशन भारत पहुँचा। इस आयोग का कोई भी सदस्य भारतीय नहीं था।
● दिसंबर 1929 में जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में 'पूर्ण स्वराज' की माँग को औपचारिक रूप से मान कर 26 जनवरी 1930 को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया।
● 6 अप्रैल 1930 को महात्मा गाँधी दांडी पहुँचे जहाँ उन्होंने नमक कानून तोड़ कर 6 अप्रैल को सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरूआत की।
● सविनय अवज्ञा आंदोलन में लोगों ने अंग्रेजों का सहयोग न करने के लिए औपनिवेशिक कानूनों का उल्लंघन किया।
● 1927 में भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग परिसंघ (फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स एण्ड इंडस्ट्री-फिक्की) का गठन किया।
● विदेशी कपड़ों व शराब की दुकानों की पिकेटिंग (रास्ता रोकना) की।
● गाँधी जी के आह्वान के बाद औरतों को राष्ट्र की सेवा करना अपना पवित्र दायित्व दिखाई देने लगा था।
● 1930 के बाद अछूत खुद को दलित या उत्पीड़ित कहने लगे थे। गाँधीजी ने इन्हें अब
'हरिजन' यानी ईश्वर की संतान कहा। • गाँधी जी एवं अंबेडकर के मध्य सितंबर 1932 में पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर किए गए।
● बकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने 1870 के दशक में मातृभूमि की स्तुति के रूप में 'वन्दे मातरम्' गीत लिखा था।
◆ 1905 में अवनीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत माता का विख्यात चित्र बनाया।
● भारतीय लोककथाओं के पुनर्जीवन से भी राष्ट्रवाद का विचार मजबूत हुआ।
● बंगाल में स्वदेशी आंदोलन के दौरान एक तिरंगा झंडा (हरा, पीला, लाल) तैयार किया गया।
● जुलूसों में यह झंडा थामे चलना शासन के प्रति अवज्ञा का संकेत था।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. व्याख्या करें
(क) उपनिवेशों में राष्ट्रवाद के उदय की प्रक्रिया उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन से जुड़ी हुई क्यों थी ।
उत्तर- उपनिवेशों में राष्ट्रवाद के उदय की प्रक्रिया उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन से जुड़ी हुई थी, क्योंकि औपनिवेशिक शासकों के विरुद्ध संघर्ष के दौरान लोग आपसी एकता को पहचानने लगे थे। उनका समान रूप से उत्पीड़न और दमन हुआ था। इस साझा अनुभव ने उन्हें एकता के सूत्र में बाँध दिया। वे यह जान गए थे कि विदेशी शासकों को एकजुट होकर ही बाहर निकाला जा सकता है। उनकी इस उपनिवेशवाद विरोधी भावना ने भी राष्ट्रवाद के उदय में सहायता पहुँचाई।
(ख) पहले विश्व युद्ध ने भारत में राष्ट्रीय आंदोलन के विकास में किस प्रकार योगदान दिया।
उत्तर- पहले विश्व युद्ध का भारत में राष्ट्रवादी आंदोलन के विकास में निम्न योगदान रहा-
(i) भारतीयों में आत्मविश्वास की भावना जागृत हुई प्रथम विश्व युद्ध में भारी संख्या में भारतीयों को सेना में भर्ती किया गया। यूरोपीय देशों के स्वतंत्र वातावरण और लोकतंत्रीय संगठनों का उन पर प्रभाव पड़ा। युद्ध के अनुभवों से उन्हें अपनी क्षमता पर विश्वास हुआ। विश्व युद्ध के जीतने में भारतीयों का मत्वपूर्ण योगदान रहा। इससे भारतीयों में आत्मविश्वास की भावना जागृत हुई और उन्हें विश्वास हुआ कि यूरोपीय देशों से मुक्ति की आवश्यकता है।
(ii) आर्थिक कारण - युद्ध में अत्यधिक व्यय के कारण ब्रिटिश सरकारों ने करों में वृद्धि कर दी जिससे सभी भारतीयों के मन में रोष उत्पन्न हो गया। अतः प्रथम विश्वयुद्ध के बाद राष्ट्रीय आंदोलन में भारतीयों ने ज्यादा भाग लिया।
(iii) युद्धकालीन परिस्थितियाँ विश्व युद्ध में भारत को न चाहते हुए भी गुलामी के कारण युद्ध का हिस्सा बनना पड़ा। यह हिस्सेदारी अनेक भारतीयों को अच्छी नहीं लगी इसलिए उनके मन में राष्ट्रीयता की भावना जागृत हुई।
(iv) युद्ध की संधियाँ - ऑटोमन सम्राट पर थोपी गयी संधियों के कारण मुस्लिम नेता नाराज हो गए जिसके कारण इन्होंने गाँधीजी के साथ मिलकर राष्ट्रीय आंदोलन को तेजी से बढ़ाया।
(ग) भारत के लोग रॉलट एक्ट के विरोध में क्यों थे।
उत्तर- रॉलट एक्ट को भारतीय सदस्यों के भारी विरोध के बावजूद इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल ने बहुत जल्दबाजी में पारित किया था। इस कानून के जरिए सरकार को राजनीतिक गतिविधियों को कुचलने और राजनीतिक कैदियों को दो साल तक बिना मुकदमा चलाए जेल में बंद रखने का अधिकार मिल गया था। रॉलट एक्ट भारतीयों के लिए 'काला कानून' था। इसके द्वारा सरकार क्रांतिकारियों एवं देशभक्तों को कैद कर राष्ट्रीय आंदोलन को समाप्त करना चाहती थी। इसलिए भारत के लोग रॉलट एक्ट के विरोध में थे।
(घ) गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन को वापस लेने का फ़ैसला क्यों लिया।
उत्तर- चौरी-चौरा नामक स्थान पर 5 फरवरी, 1922 की घटना के कारण गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन को वापस लेने का फैसला लिया क्योंकि गोरखपुर के चौरी-चौरा में बाजार से गुजर रहा एक शांतिपूर्ण जुलूस पुलिस के साथ हिंसक टकराव में बदल गया। जनता ने आवेश में आकर थानेदार और कई सिपाहियों की हत्या कर दी और पुलिस स्टेशन में आग लगा दी। इस घटना के बाद इस आंदोलन ने अपना अहिंसात्मक रूप खो दिया और जनता में हिंसात्मक प्रवृत्ति बढ़ने लगी। अतः गाँधी जी ने फरवरी, 1922 ई. को असहयोग आंदोलन को वापस लेने का फैसला किया।
प्रश्न 2. सत्याग्रह के विचार का क्या मतलब है?
उत्तर सत्याग्रह जन आंदोलन का एक नया तरीका था, यह दमनकारियों के विरुद्ध जनआंदोलन का एक अहिंसावादी तरीका था -
(i) इसमें सत्य की शक्ति तथा सत्य की खोज की जरूरत पर बल दिया गया।
(ii) इसका सुझाव था कि यदि उद्देश्य सत्य है और संघर्ष किसी अन्याय के विरुद्ध है तो दमनकारी के विरुद्ध लड़ने के लिए शारीरिक बल की कोई आवश्यकता नहीं होती।
(iii) लोगों को दमनकारियों समेत सत्य को समझने के लिए प्रेरित करना न कि हिंसा के माध्यम से सत्य को स्वीकार करना या करवाना।
(iv) इस संघर्ष में अंततः सत्य की ही जीत होती है। गाँधी जी का विश्वास था कि अहिंसा का यह धर्म सभी भारतीयों को एकता के सूत्र में बाँध सकता है।
प्रश्न 3. निम्नलिखित पर अख़बार के लिए रिपोर्ट लिखें
(क) जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड ।
(ख) साइमन कमीशन ।
उत्तर- (क) जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड- 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग में एक जनसभा आयोजित करने की घोषणा की गई। लोगों को वहाँ एकत्रित होने दिया गया। जब लोग हजारों की संख्या में इकट्ठे हो गए तो वहाँ जनरल डायर बख्तरबंद गाड़ियों तथा सेना के साथ जा पहुँचा। उसने बिना किसी चेतावनी के निहत्थे व शांतिपूर्ण सभा कर रहे लोगों पर गोलीबारी करने का आदेश दे दिया। मरने वाले भारतीयों की संख्या बहुत अधिक थी। ऐसा करने के पीछे जनरल डायर का उद्देश्य नैतिक प्रभाव पैदा करना व सत्याग्रही लोगों के मन में आतंक तथा भय की भावना पैदा करना था। इतनी भारी संख्या में निर्दोष लोगों की हत्या बहुत ही बड़ा अमानवीय कृत्य है। इसके लिए सरकार को माफी भाँगना चाहिए तथा जनरल डायर को कड़ी से कड़ी सजा देनी चाहिए।
(ख) साइमन कमीशन - ब्रिटेन की नयी टोरी सरकार ने सर जॉन साइमन के नेतृत्व में एक वैधानिक आयोग का गठन कर दिया। यह आयोग भारत में संवैधानिक व्यवस्था को कार्यशैली का अध्ययन कर उसके बारे में सुझाव देगा यह आयोग भारत के लिए बना है परंतु इसका कोई भी सदस्य भारतीय नहीं है। इसके सभी सदस्य अंग्रेज हैं।
जब 1928 में साइमन कमीशन भारत पहुँचा तो उसका स्वागत 'साइमन कमीशन वापस जाओ' से हुआ। इस प्रदर्शन में कांग्रेस और मुस्लिम लीग सहित सभी पार्टियों ने हिस्सा लिया। इस कमीशन के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन करते हुए लाला लाजपत राय पर ब्रिटिश पुलिस ने हमला कर दिया जिसके कारण इस महान नेता की मौत हो गयी।
साइमन कमीशन की रिपोर्ट भारतीयों के असंतोष को दूर करने में असमर्थ रही। इस रिपोर्ट दर में न तो औपनिवेशिक साम्राज्य का उल्लेख है और न तो अधिराज्य की स्थिति को ही स्पष्ट किया गया था। साथ ही केन्द्र में उत्तरदायी सरकार की स्थापना का भी उल्लेख नहीं था।
प्रश्न 4. इध्याय में दी गई भारत माता की छवि और अध्याय 1 में दी गई जर्मेनिया की छवि की तुलना कीजिएस अ।
प्रश्न 5. 1921 में असहयोग आंदोलन में शामिल होने वाले सभी सामाजिक समूहों की सूची बनाइए। इसके बाद उनमें से किन्हीं तीन को चुनकर उनकी आशाओं और संघर्षों.. के बारे में लिखते हुए यह दर्शाइए कि वे आंदोलन में शामिल क्यों हुए।
उत्तर - 1921 ई. में असहयोग आंदोलन में अनेक सामाजिक समूहों ने भाग लिया था, जिनमें से मुख्य निम्नलिखित हैं
1. शहरी मध्यम वर्ग का समूह।
2. ग्रामीण क्षेत्रों के किसान का समूह।
3. जंगली क्षेत्रों के आदिवासी समूह।
4. अवध के किसान ।
5. मुस्लिम खिलाफ़त कमेटी के कार्यकर्ता।
6. बागानों में काम करने वाले मजदूरों का
7. कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता समूह।
उपर्युक्त समूहों में से तीन निम्न कारणों से असहयोग आन्दोलन में शामिल हुए
1. शहरी मध्यम वर्ग का समूह- इसमें मुख्य रूप से छात्र, शिक्षक और वकील शामिल थे। इस वर्ग में अब राष्ट्रीयता को चेतना आ रही थी। यह शहरी मध्यम वर्ग अपने बीच अब नए अच्छे नेतृत्व को देख रहा था। यह वर्ग भारत की दुर्दशा एवं उसके कारण स्वयं पर होने वाले अन्याय से परेशान था। इसके लिए इन्होंने आंदोलन को विदेशी वर्चस्व से स्वतंत्रता के मार्ग के रूप में देखा। उदाहरण स्वरूप उन्होंने विदेशी सामानों का बहिष्कार किया। वकीलों ने मुकदमा लड़ना बंद कर दिया। देश के ज्यादातर प्रांतों में परिषद् चुनावों का बहिष्कार किया गया था।
2. मुस्लिम ख़िलाफत कमेटी के कार्यकर्ता खिलाफ़त- आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य खलीफा की शक्ति को फिर से स्थापित करना था। प्रथम विश्व युद्ध के समय मुस्लिम लोग और कांग्रेस के बीच समझौता हो गया था। मुस्लिम लोग पर राष्ट्रवादी नेताओं का प्रभाव कायम हो गया था। गाँधी जी ने हिन्दू और मुसलमान नेताओं का एक सम्मेलन आयोजित किया। इसका नेतृत्व गाँधी जी ने किया था। सभी ने सर्वसम्मति से खिलाफ़त एवं असहयोग आंदोलन में समर्थन देने का निश्चय किया। तब उन्होंने गाँधी जी के असहयोग आंदोलन के आह्वान पर आंदोलन में सहयोग दिया। हिन्दु-मुस्लिम एकता के साथ यह आंदोलन शुरू हुआ।
3. बाग़ानों में काम करने वाले मजदरों का समूह - महात्मा गाँधी जी के विचारों और स्वराज्य की अवधारणा के बारे में मजदूरों को अपनी समझ थी। असम के बागानों के मजदूरों के लिए आजादी का मतलब यह था कि वे उन चारदीवारियों से जब चाहे बाहर आ जा सकते हैं जिसमें वे अब तक कैद थे। उन्होंने आजादी का अर्थ यह समझा कि वे अपने घरों में संपर्क कर सकते हैं। 1859 के इंग्लैंड इमिग्रेशन एक्ट के अंतर्गत बागानों में काम करने वाले मजदूरों को बिना इजाजत बागानों से बाहर जाने की छूट नहीं थी।
अतः जब उन्होंने असहयोग आंदोलन के बारे में सुना तो हजारों मजदूरों अपने अधिकारियों को अवहेलना करने लगे। उन्होंने बागानों में काम करना छोड़ दिया और अपने घर वापस चले गए। उनको यह लगने लगा कि अब गाँधी राज आ रहा है इसलिए अब सबको गाँव में जमीन मिलेगी। अतः उन्होंने भी असहयोग आंदोलन में गाँधी जी का साथ दिया।
प्रश्न 2. नमक यात्रा की चर्चा करते हुए स्पष्ट करें कि यह उपनिवेशवाद के ख़िलाफ़ प्रतिरोध का एक असरदार प्रतीक था।
अथवा
गाँधी जी की नमक यात्रा का वर्णन करें।
उत्तर- महात्मा गाँधी ने देश को एकजुट करने के लिए नमक को एक शक्तिशाली प्रतीक माना 31 जनवरी, 1930 को उन्होंने वायसराय इरविन को एक खत लिखा। इस खत में उन्होंने ॥ माँगों का उल्लेख किया था। इसमें कुछ माँगें साधारण थीं तथा कुछ माँगें उद्योगपतियों से लेकर किसानों के लिए थीं। गाँधी जी इन मांगों के द्वारा समाज के सभी वर्गों को अपने साथ जोड़ना चाहते थे जिससे सभी उनके अभियान में शामिल हो सकें। इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण माँग नमक कर को समाप्त करने से सम्बन्धित थी। नमक का इस्तेमाल अमीर-गरीब सभी वर्ग के लोग करते थे। यह भोजन का अभिन्न हिस्सा था। अतः नमक पर कर और उसके उत्पादन पर सरकारी अंकुर को महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश शासन का सबसे दमनकारी पहलू बताया।
गाँधी जी ने एक पत्र द्वारा चेतावनी दी कि यदि 11 मार्च तक उनकी माँग पूरी नहीं होगी तो कांग्रेस सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू कर देगी। इरविन के द्वारा उनके प्रस्तावों को ठुकरा दिया गया तब गाँधी जी ने 78 सहयोगियों के साथ दांडी यात्रा शुरू कर दी 16 अप्रैल को गाँधी जी दांडी पहुँचे और उन्होंने समुद्र के पानी को उबालकर नमक बनाना शुरू कर दिया। यह कानून का उल्लंघन था। इस तरह न केवल अंग्रेजों की शांतिपूर्ण अवज्ञा की गई बल्कि औपनिवेशिक कानूनों का उल्लंघन करने के लिए आह्वान किया जाने लगा। देश के हजारों लोगों ने नमक कानून तोड़ा और सरकारी नमक कारखानों के सामने प्रदर्शन भी किया। विदेशी कपड़ों का बहिष्कार तथा शराब की दुकानों की पिकेटिंग (धरना) होने लगी। बहुत सारे स्थानों पर वन कानूनों का उल्लंघन करने लगे। इस प्रकार नमक यात्रा उपनिवेशवाद के खिलाफ प्रतिरोध का एक असरदार प्रतीक सिद्ध हुई।
प्रश्न 3. कल्पना कीजिए कि आप सिविल नाफ़रमानी आंदोलन में हिस्सा लेने वाली महिला हैं। बताइए कि इस अनुभव का आपके जीवन में क्या अर्थ होता ।
उत्तर- सिविल नाफरमानी आंदोलन में अनेक औरतों के साथ मैंने भी बड़े पैमाने पर भाग लिया।
(i) मैं बहुत गर्व और महानता का अनुभव कर रही हूँ। जब मैं हजारों एक जैसे मानस वाली महिलाओं के साथ सविनय अवज्ञा आंदोलन के तहत यात्रा करूंगी तो मेरे मन में मेरे प्रिय देश के लिए कुछ करने की भावना जागृत होगी।
(ii) यद्यपि इतनी बड़ी भीड़ के साथ शहर की सड़कों से गुजरने का मेरा यह अनुभव बहुत असाधारण होगा क्योंकि जीवन में इससे पहले मुझे ऐसे अनुभव का मौका नहीं मिला लेकिन अन्य बहनों को देखकर मुझे संतोष होगा क्योंकि वे सभी मेरी तरह हैं, उनका भी यह पहला अनुभव है।
(iii) सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने से भारतीय समाज में औरतों का स्तर भी ऊँचा उठेगा।
(iv) इससे उन्हें भारतीय पुरुषों के साथ समान महत्त्व मिलेगा।
(v) यद्यपि इससे औरतों के घरेलू जीवन में अधिक परिवर्तन नहीं होगा, लेकिन फिर भी आंदोलन में भागीदारी, भारतीय औरतों के लिए एक सबसे महत्त्वपूर्ण क्षण होगा।
प्रश्न 4. राजनीतिक नेता पृथक् निर्वाचिका के सवाल पर क्यों बँटे हुए थे ।
उत्तर राजनीतिक नेता पृथक् निर्वाचिका के सवाल पर इसलिए बैटे हुए थे क्योंकि राजनीतिक नेता भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों और समुदायों का प्रतिनिधित्व करते थे; जैसे, डॉ. अंबेडकर 'दमित वर्गों' या दलितों का नेतृत्व करते थे। इसी प्रकार मोहम्मद अली जिन्ना भारत के मुस्लिम सामाजिक समूह का प्रतिनिधित्व करते थे। ये नेतागण विशेष राजनीतिक अधिकारों और पृथक् निर्वाचन क्षेत्र माँगकर अपने अनुयायिओं का जीवन स्तर ऊँचा उठाना चाहते थे। लेकिन कांग्रेस पार्टी, विशेषकर गाँधी जी का मानना था कि पृथक् निर्वाचन क्षेत्र भारत की एकता पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा। गाँधी जी की यह सोच सही भी थी क्योंकि अंग्रेज इस तरह से भारतीयों के बीच फूट डालना चाहते थे। इसलिए कांग्रेस भी पृथक् निर्वाचिका के सवाल पर अन्य पार्टियों के साथ नहीं थी। कई पार्टियाँ पृथक् निर्वाचिका के समर्थन में थीं जिससे उनको अधिक लाभ मिले, भले ही इससे राष्ट्रीय एकता कमजोर हो जाए। इसलिए इस माँग के विरुद्ध गाँधी जी अनशन पर भी बैठे थे।
परियोजना कार्य -
प्रश्न- इंडो-चाइना के उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन का अध्ययन करें। भारत के राष्ट्रीय आंदोलन की तुलना इंडो-चाइना के स्वतंत्रता संघर्ष से करें।
उत्तर- इंडो-चाइना में भारत के समान यूरोपीय देशों का कब्जा था। वे देश भी इन यूरोपीय देशों से आजादी चाहते थे। भारत का स्वतंत्रता संघर्ष अहिंसा पर आधारित था, भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में पत्र-पत्रिकाएँ आदि की प्रमुखता रही। जबकि इंडो-चाइना में स्वतंत्रता के लिए हिंसा का सहारा लेना पड़ा था। इंडो-चाइना में गुरिल्ला (छापामार युद्ध हुआ जिसमें अनेक लोगों की मृत्यु हुई थी।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1. सही विकल्प चुनिए
महात्मा गाँधी ने सत्याग्रह के हथियार का सर्वप्रथम प्रयोग कहाँ किया था -
● (क) दक्षिण अफ्रीका में
(ग) खेड़ा में
(ख) चंपारण में
(घ) अहमदाबाद में
उत्तर- (क) दक्षिण अफ्रीका में
● गाँधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन शुरू किया गया - (क) 1920 ई.
(ग) 1918 ई.
(ख) 1930 ई.
(घ) 1819 ई.
उत्तर- (क) 1920 ई.
● खिलाफत आंदोलन का नेतृत्व किसने किया -
(ख) शौकत अली और मोहम्मद अली
(क) गाँधी जी और नेहरू
(ग) मोहम्मद अली जिन्ना
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर- (ख) शौकत अली और मोहम्मद अली
• गाँधी इरविन समझौता कब हुआ था -
(क) 1930 ई. में
(ख) 1931 ई. में
(ग) 1933 ई. में
(घ) 1934 ई. में
उत्तर- (ख) 1931 ई. में
● भारत में साइमन कमीशन कब आया
(क) 1926
(ख) 1927
(ग) 1928
(घ) 1929
उत्तर (ग) 1928
● गाँधी जी ने अपनी 'नमक यात्रा' की पूर्व सूचना किसे दी थी
(क) लार्ड रिपन को
(ख) लार्ड कैनिंग को
(ग) लार्ड इर्विन को
(घ) लार्ड लिटन को
उत्तर (ग) लाई इर्विन को
प्रश्न 2. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
1. जलियाँवाला बाग हत्याकांड दिनांक………. 1919 को अमृतसर शहर में हुआ था।
2. आंध्रप्रदेश की गूडेम पहाड़ियों में आंदोलन का नेतृत्व ....... कर रहे थे।
3. ……… में हिंसक टकराव के बाद गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन रोक दिया।
4. पूर्ण स्वराज की माँग अधिवेशन में ……...... को कांग्रेस अधिवेशन में औपचारिक रूप से मानी गई।
5. सितंबर 1932 को गाँधी जी एवं अंबेडकर के मध्य…….. पर हस्ताक्षर किए गए।
उत्तर- 1.13 अप्रैल,
2. अल्लूरी सीताराम राजू,
3. चौरी-चौरा,
4. लाहौर, दिसंबर 1929,
5. पूना पैक्ट
प्रश्न 3. एक शब्द या एक वाक्य में उत्तर दीजिए
● हिंद स्वराज पुस्तक किसने और कब लिखी थी ?
उत्तर- महात्मा गांधी ने सन् 1909 में।
● अवध में असहयोग आंदोलन का नेतृत्व कौन कर रहे थे ?
उत्तर बाबा रामचंद्र |
● किसने 1930 में दलितों के लिए दमित वर्ग एसोसिएशन (डिप्रेस्ड क्लासेस एसोसिएशन) का गठन किया ?
उत्तर- डॉ. भीमराव अंबेडकर ने
● भारत माता की सन् 1905 की विख्यात छवि किस कलाकार द्वारा बनाई थी?
उत्तर अवनीन्द्रनाथ टैगोर।
• बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखा 'बन्दे मातरम्' गीत उनके किस में शामिल किया गया?
उत्तर आनन्दमठ ।
● मद्रास में नरेसा शास्त्री ने किस नाम का तमिल लोक कथाओं का चार खंडों का विशाल संकलन प्रकाशित किया?
उत्तर द फ्रोकलार्स ऑफ सदर्न इंडिया।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न- महात्मा गांधी ने सत्याग्रह को सक्रिय प्रतिरोध क्यों कहा है ?
उत्तर महात्मा गाँधी के अनुसार सत्याग्रह एक प्रतिरोध है जिसमें हम अहिंसा का सहारा लेते हैं। इस अहिंसा में हम विरोधी पक्ष का सक्रिय एवं निरंतर रूप से प्रतिरोध करते हैं। इसलिए गाँधी जी ने इसे सक्रिय प्रतिरोध कहा।
प्रश्न खिलाफत आंदोलन की असहयोग आंदोलन में क्या भूमिका थी?
उत्तर- खिलाफत आंदोलन ने मुसलमानों को राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। मुसलमानों ने 1920 ई. में खिलाफत आंदोलन चलाकर अंग्रेजों को किसी भी तरह का सहयोग देना बन्द कर दिया था।
प्रश्न- बहिष्कार एवं पिकेटिंग को समझाइए ।
उत्तर- बहिष्कार किसी के साथ संपर्क रखने और जुड़ने से इनकार करना या गतिविधियों में हिस्सेदारी, चीजों की खरीद व इस्तेमाल से इनकार करना। आमतौर पर यह विरोध का एक रूप होता है।
पिकेटिंग प्रदर्शन या विरोध का एक ऐसा स्वरूप जिसमें लोग किसी दुकान, फैक्ट्री या दफ्तर के भीतर जाने का रास्ता रोक लेते हैं।
प्रश्न बारदोली सत्याग्रह क्या था?
उत्तर - 1928 में गुजरात के बारदोली तालुका में भू-राजस्व बढ़ाने के खिलाफ किसाने ने सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में सत्याग्रह किया जो बारदोली सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है। यह सत्याग्रह सफल रहा और इसे भारत के कई हिस्सों से अत्यधिक समर्थन प्राप्त हुआ।
प्रश्न- स्वराज पार्टी का गठन किसने और क्यों किया?
उत्तर सी. आर. दास और मोतीलाल नेहरू ने कांग्रेस पार्टी के भीतर प्रांतीय परिषदों की राजनीति में वापस लौटने के लिए स्वराज पार्टी का गठन किया।
प्रश्न- लाला लाजपत राय की मृत्यु कैसे हुई ?
उत्तर - 1928 में साइमन कमीशन के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने लाला लाजपत राय पर हमला कर दिया। इस हमले में मिले गहरे जख्मों के कारण उनकी मृत्यु हो गयी।
प्रश्न 26 जनवरी, 1930 का महत्व लिखिए।
उत्तर- दिसंबर 1929 में जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज की माँग को औपचारिक रूप से मान लिया गया जिसके तहत 26 जनवरी, 1930 स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया गया।
प्रश्न- गाँधी जी ने दाण्डी यात्रा कब और क्यों की?
उत्तर 12 मार्च, 1930 को गाँधी जी ने अपने साथियों सहित साबरमती आश्रम से लगभग 200 मील दूर स्थित दाण्डी यात्रा नमक कानून तोड़ने के लिए की।
प्रश्न - अंबेडकर ने गाँधी जी की पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर कब किया? इसके द्वारा क्या प्रावधान किए गए थे?
उत्तर--अंबेडकर ने गाँधी जी की राय मानकर सितंबर 1932 में पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर कर दिया। इससे दलित वर्गों (अनुसूचित जाति) को प्रांतीय और केन्द्रीय विधानी परिषदों में आरक्षित सीटें मिल गई हालाँकि उनके लिए मतदान सामान्य निर्वाचन क्षेत्रों में ही होता था।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न- वे कौन से हालात थे जिनके कारण जलियाँवाला बाग घटना हुई
उत्तर- (i) रॉलट एक्ट भारतीय सदस्यों के भारी विरोध के बावजूद सरकार द्वारा रॉलट उत्तर एक्ट पारित कर दिया गया। इस एक्ट द्वारा सरकार को किसी को भी बिना मुकद्दमा चलाए, जेल में बंद रखने का अधिकार मिल गया।
(ii) सत्याग्रह गाँधी जी ने रॉलट सत्याग्रह आरंभ करने का निर्णय लिया। विभिन्न शहरों में रैलियों का आयोजन किया गया, कामगार हड़ताल पर चले गए तथा दुकानें बंद हो गई।
(iii) मार्शल लॉ अमृतसर के बहुत सारे स्थानीय नेताओं को हिरासत में ले लिया गया था एवं गाँधीजी के दिल्ली प्रवेश पर पाबंदी लगा दी थी। अपने नेताओं की गिरफ्तारी के विरुद्ध लोगों की प्रतिक्रिया को देखते हुए पुलिस ने अमृतसर में 13 अप्रैल को मार्शल लॉ लगा दिया और कमान जनरल डायन ने संभाल ली थी।
(iv) सोची-समझी साजिश जनरल डायर इस तरह के हत्याकांड को जान-बूझकर करना चाहता था क्योंकि वह ऐसा करके सत्याग्रहियों के जहन में दहशत और विस्मय का भाव पैदा करके एक नैतिक प्रभाव उत्पन्न करना चाहता था।
प्रश्न- असहयोग आंदोलन के धीरे-धीरे धीमा हो जाने के पीछे कौन-से कारण उत्तरदायी थे?
अथवा
असहयोग आंदोलन शहरों में धीरे-धीरे कम क्यों होता चला गया? कारण दें।
उत्तर- असहयोग आंदोलन के धीरे-धीरे धीमा हो जाने के पीछे निम्न कारण थे।
(i) महंगी खादी - खादी का कपड़ा प्रायः मिलों में भारी पैमाने पर उत्पादन की तुलना में अधिक महँगा था और निर्धन लोग इसे खरीदने में असमर्थ थे।
(ii) वैकल्पिक संस्थानों का अभाव ब्रिटिश संस्थाओं के बहिष्कार से एक समस्या उत्पन्न हो गई। आंदोलन को सफल बनाने के लिए यह आवश्यक था कि ब्रिटिश संस्थाओं के स्थान पर देशी संस्थाएँ विकल्प के रूप में स्थापित की जाएँ, परन्तु यह कार्य बहुत धीमी गति का था। अतः विद्यार्थियों को पुनः सरकारी स्कूलों तथा वकीलों को सरकारी न्यायालयों में वापस जाने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं रह गया था।
(iii) विभिन्न अर्थों सहित स्थानीय आंदोलन मजदूर, उद्योगपति, किसान, व्यापारी आदि की महात्मा गाँधी के विचारों और स्वराज की अवधारणा के बारे में अपनी अलग समझ थी। उन्होंने अपनी माँगों के लिए हिंसात्मक तरीके अपनाने आरंभ किए। गाँधी जी तथा कांग्रेस इनसे सहमत नहीं थे। इसीलिए आंदोलन धीमा पड़ने लगा।
प्रश्न अल्लूरी सीताराम राजू कौन थे? विद्रोहियों को गांधी करने में उनकी भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- अल्लूरी सीताराम राजू आंध्र प्रदेश के आदिवासी क्षेत्र के रहने वाले थे तथा उन्होंने गुडेंम विद्रोहियों को नेतृत्व प्रदान किया था। वे बहुमुखी व्यक्तित्व के धनी थे। वे खगोलीय घटनाओं का सटीक अनुमान लगा सकते थे, बीमार लोगों का इलाज करने थे। राजू महात्मा गाँधी की महानता के गुण गाते थे। उनका कहना था कि वह असहयोग आंदोलन से प्रेरित हैं। उन्होंने लोगों को खादी पहनने तथा शराब छोड़ने के लिए प्रेरित किया। साथ ही उन्होंने यह दावा भी किया कि भारत अहिंसा के बल पर नहीं बल्कि केवल बलप्रयोग के जरिए ही आजाद हो सकता है। ये स्वराज प्राप्ति के लिए अंग्रेजों से गुरिल्ला युद्ध करते रहे, परन्तु 1924 को इन्हें अंग्रेजों ने पकड़ लिया और फाँसी दे दी।
प्रश्न- बागानी मजदूरों ने असहयोग आंदोलन में क्यों भाग लिया? कोई तीन कारण स्पष्ट कीजिए।
अथवा
1859 का इनलैंड इमिग्रेशन एक्ट बागान मजदूरों के लिए कष्टप्रद क्यों था ?
उत्तर- बागानी मजदूरों ने असहयोग आंदोलन में निम्न कारणों से भाग लिया.
(1) 1859 के इंनलैंड इमिग्रेशन एक्ट के तहत बागानों में काम करने वाले मजदूरों को बिना इजाजत बागान से चाहर जाने की छूट नहीं होती थी।
(ii) बागान मजदूरों को कम वेतन देकर अधिक काम लिया जाता था।
(iii) बागान मजदूरों को बंधुआ मजदूरों की तरह रखकर उनसे काम लिया जाता था।
प्रश्न- हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी की स्थापना कब हुई ? इसके नेताओं ने अंग्रेजी सरकार के प्रति किस प्रकार विरोध प्रदर्शन किया?
उत्तर- बहुत सारे राष्ट्रवादियों को लगता था कि अंग्रेजी शासन के विरुद्ध संघर्ष को अहिंसा के द्वारा पूरा नहीं किया जा सकता। अतः 1928 में दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में बैठक हुई और हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी (H.S.R.A.) की स्थापना की गई। इसके नेताओं में भगतसिंह, जतिन दास और अजॉय घोष शामिल थे। देश के विभिन्न भागों में कार्यवाही करते हुए एच. एस. आर.ए. ने ब्रिटिश सत्ता के प्रतीकों को निशाना बनाया। 1929 में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने लेजिस्लेटिव असेंबली में बम फेंका। उसी वर्ष उन्होंने उस ट्रेन की उड़ान का प्रयास किया जिसमें लार्ड इरविन यात्रा कर रहे थे।
इस प्रकार क्रांतिकारियों ने अपना विरोध अंग्रेजी शासन के विरुद्ध प्रदर्शित किया। बाद में उन पर मुकदमा चलाया गया और फाँसी दे दी गई।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न- सत्याग्रह क्या था? गाँधी जी द्वारा आयोजित कुछ सत्याग्रहों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- सत्याग्रह गाँधी जी द्वारा विरोध के लिए अपनाया गया एक प्रकार का अहिंसात्मक तीरका है। सत्याग्रह के विचार में सत्य की शक्ति पर आग्रह और सत्य की खोज पर जोर दिया जाता था। इसका अर्थ यह था कि अगर आपका उद्देश्य सच्चा है, यदि आपका संघर्ष अन्याय के खिलाफ है तो उत्पीड़क से मुकाबला करने के लिए आपको किसी शारीरिक बल की आवश्यकता नहीं है। प्रतिशोध की भावना या आक्रामकता का सहारा लिए बिना सत्याग्रही केवल अहिंसा के सहारे भी अपने संघर्ष में सफल हो सकता है। इसके लिए दमनकारी शत्रु की चेतना को झिंझोड़ना चाहिए। उत्पीड़क शत्रु को ही नहीं बल्कि सभी लोगों को हिंसा के जरिए सत्य को स्वीकार करने पर विवश करने की बजाये सच्चाई को देखने और सहज भाव से स्वीकार करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। गाँधी जी के अनुसार इस संघर्ष में अंततः सत्य की ही जीत होती है। गाँधी जी का विश्वास था कि अहिंसा का यह धर्म सभी भारतीयों को एकता के सूत्र में बाँध सकता है।
भारत आने से पहले दक्षिण अफ्रीका में गाँधी जी ने नस्लभेदी अंग्रेजी सरकार से वहाँ सत्याग्रह के द्वारा सफलतापूर्वक लोहा लिया था। भारत आने के बाद गाँधी जी ने कई स्थानों पर सत्याग्रह आंदोलन चलाया। 1917 में उन्होंने बिहार के चंपारन में तथा गुजरात के खेड़ा जिले के किसानों की मदद के लिए सत्याग्रह आयोजन किया। 1918 में गाँधीजी सूती कपड़ा कारखानों के मजदूरों के बीच सत्याग्रह आंदोलन चलाने अहमदाबाद गए थे।
प्रश्न- सविनय अवज्ञा आंदोलन में शामिल विभिन्न सामाजिक समूह कौन-से थे? उन्होंने आंदोलन में क्यों हिस्सा लिया?
उत्तर- सविनय अवज्ञा आंदोलन में निम्नलिखित सामाजिक समूहों ने हिस्सा लिया
1. किसान - गाँवों में व्यवसायी वर्ग की तरह संपन्न किसानों ने सविनय अवज्ञा आंदोलन का पूर्णरूपेण समर्थन किया। उन्होंने अपने समुदाय को एकजुट किया और कई बार अनिच्छुक सदस्यों को बहिष्कार के लिए मजबूर किया। उनके लिए स्वराज की लड़ाई भारी लगान के
खिलाफ लड़ाई थी। लेकिन जब 1931 में लगानों के घंटे बिना आदोलन वापस ले लिया गया तो उन्हें बड़ी निराशा हुई। गरीब किसान केवल लगान में ही कमी नहीं चाहते थे, वे चाहते थे कि उन्हें जमींदारों को जो भाड़ा चुकाना था उसे माफ कर दिया जाए। इसके लिए उन्होंने कई रेडिकल आंदोलनों में हिस्सा लिया, जिसका नेतृत्व अक्सर समाजवादियों और कम्युनिस्टों के हाथों में होता था।
2. व्यवसायी वर्ग व्यवसायी वर्ग ने अपने कारोबार को फैलाने के लिए ऐसी औपनिवेशिक नीतियों का विरोध किया जिनके कारण उनकी व्यावसायिक गतिविधियों में रुकावट आती थी। वे विदेशी वस्तुओं के आयात से सुरक्षा चाहते थे। इसके लिए इन्होंने अपने सविनय अवज्ञा आंदोलन का समर्थन किया।
3. मजदूर वर्ग जैसे-जैसे उद्योगपति कांग्रेस के निकट आने लगे मजदूर कांग्रेस से दूर होते गए। फिर भी कुछ मजदूरों ने सविनय अवज्ञा आंदोलन में हिस्सा लिया। उन्होंने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार जैसे कुछ गांधीवादी विचारों को कम वेतन व खराब कार्य स्थितियों के खिलाफ अपनी लड़ाई से जोड़ लिया था। 1930 में रेलवे कामगारों को और 1932 में गोदी कामगारों की हड़ताल हुई। 1930 में छोटानागपुर के टीन खानों के हजारों मजदूरों ने गाँधी टोपी पहनकर रैलियों और बहिष्कार अभियानों में हिस्सा लिया।
4. महिलाएँ सविनय अवज्ञा आंदोलन में औरतों ने बड़े पैमाने पर भाग लिया। गाँधी जो के नमक सत्याग्रह के दौरान हजारों औरतें उनकी बात सुनने के लिए घर से बाहर आ जाती थीं। उन्होंने जुलूसों में हिस्सा लिया, नमक बनाया, विदेशी कपड़ों की होली जलाई। बहुत सारो महिलाएँ जेल भी गई। गांधी जी के आह्नान के बाद औरतों ने बड़ी संख्या में इस आंदोलन में भाग लिया।
प्रश्न 19वीं शताब्दी के अंत तक भारत में लोगों को संगठित करने में आई विभिन्न समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा
सविनय अवज्ञा आंदोलन की सीमाएँ क्या थीं? व्याख्या कीजिए।
अथवा
"सभी सामाजिक समूह' स्वराज' की अमूर्त अवधारणा से प्रभावित नहीं थे।" 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन के संदर्भ में इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर- (i) दलित वर्गों की समस्याएँ- कांग्रेस ने लंबे समय तक दलितों पर ध्यान नहीं दिया क्योंकि कांग्रेस रूढ़िवादी सवर्ण हिंदू सनातनपंथियों से डरी हुई थी। डॉ. अंबेडकर ने 1930 में दलितों को दमित वर्ग एसोसिएशन में संगठित किया। दलितों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों के सवाल पर दूसरे गोलमेज सम्मेलन में महात्मा गाँधी के साथ उनका काफी विवाद हुआ।
(ii) हिन्दू-मुसलमानों के बीच बढ़ता फासला 1920 के दशक के मध्य से कांग्रेस, हिन्दू महासभा जैसे हिंदू धार्मिक राष्ट्रवादी संगठनों के काफी करीब दिखने लगी थी। जैसे-जैसे हिंदू-मुसलमानों के बीच संबंध खराब होते गए, दोनों समुदाय उग्र धार्मिक जुलूस निकालने लगे। इससे कई शहरों में हिंदू-मुस्लिम सांप्रदायिक टकराव व दंगे हुए। हर दंगे के साथ दोनों समुदायों के बीच फासला बढ़ता गया।
(iii) पृथक् निर्वाचिका तथा दो राष्ट्र का सिद्धांत मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना ने मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचिका की माँग की। उनको भय था कि हिंदू बहुसंख्या के वर्चस्व की स्थिति में अल्पसंख्यकों को संस्कृति और पहचान खो जाएगी।
(iv) मुस्लिम नेता मोहम्मद इकबाल जैसे कई प्रमुख मुस्लिम नेताओं ने पृथक् निर्वाचिका का समर्थन किया। उन्होंने दो राष्ट्रों के सिद्धांतों का प्रस्ताव रखा जिसके अंतर्गत यह मान लिया गया कि दोनों समुदाय भिन्न राष्ट्रों से सबंध रखते हैं।
(v) औद्योगिक श्रमिकों का हिस्सा न लेना औद्योगिक श्रमिक वर्ग ने आंदोलन में नागपुर के अलावा और कहीं भी बहुत बड़ी संख्या में हिस्सा नहीं लिया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उद्योगपति आंदोलन का समर्थन कर रहे थे और कांग्रेस आंदोलन के कार्यक्रम में श्रमिकों की माँगों को समाहित करने में हिचकिचा रही थी।
प्रश्न उन प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिए, जिन्होंने भारतीयों में राष्ट्रवार को भावना को बढ़ावा दिया?
उत्तर- (i) संयुक्त संघर्ष भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष में राष्ट्रवाद की भावना प्रेरित करने का मुख्य कारण संयुक्त संघर्ष था।
(ii) सांस्कृतिक प्रक्रियाएं विभिन्न प्रकार की सांस्कृतिक प्रक्रियाएँ ऐसी थीं जिनके द्वा लोगों की कल्पना में राष्ट्रवाद के प्राण फेंके गए। इतिहास और कथाएँ, लोकगाथाएँ व ग
लोकप्रिय छवियों व प्रतीक-सभी ने राष्ट्रवाद की भावना को सुदृढ़ बनाया।
(iii) भारत माता भारत की पहचान भारत माता की छवि का रूप धारण कर गई जो पहली बार बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने बनाई थी जिन्होंने मातृभूमि की स्तुति के रूप में 'बंदे मातरम्' गीत लिखा था। स्वदेशी आंदोलन की प्रेरणा से रवीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत माता को विख्यात छवि को चित्रित किया।
(iv) भारतीय लोक कथाओं को पुनर्जीवित करना - राष्ट्रवाद का विचार भारतीय लोक कथाओं को पुनर्जीवित करके भी विकसित किया गया। 19वीं सदी के अंत में राष्ट्रवादियों ने भाटों व चारणों द्वारा गा कर सुनाई जाने वाली लोककथाओं को दर्ज (रिकॉर्ड) करना शुरू कर दिया। अपनी राष्ट्रीय पहचान को ढूँढने और अपने अतीत में गौरव का भाव पैदा करने के लिए इस लोक परंपरा को बचाकर रखना जरूरी था।
(v) इतिहास की पुनर्व्याख्या 19वीं सदी के अंत तक आते-आते बहुत सारे भारतीय यह महसूस करने लगे थे कि राष्ट्र के प्रति गर्व का भाव जगाने के लिए भारतीय इतिहास को अलग ढंग से पढ़ाया जाना चाहिए। अंग्रेजों की नजर में भारतीय पिछड़े हुए और आदिम लोग थे, ज अपना शासन खुद नहीं सँभाल सकते। इसके जवाब में, भारत के लोग अपनी महान उपलब्धियों की खोज में अतीत की ओर देखने लगे। उन्होंने उस गौरवमयी प्राचीन युग के बारे में लिखना शुरू कर दिया। इस राष्ट्रवादी इतिहास में पाठकों को अतीत में भारत की महानता व उपलब्धियों पर गर्व करने और ब्रिटिश शासन के तहत दुर्दशा से मुक्ति के लिए संघर्ष का मार्ग अपनाने का आह्वान किया जाता था।
प्रश्न- भारत छोड़ो आंदोलन पर लेख लिखिए।
उत्तर- क्रिप्स मिशन की असफलता एवं द्वितीय विश्वयुद्ध के प्रभावों ने भारत में व्यापक असंतोष को जन्म दिया। इसके फलस्वरूप गाँधी जी ने एक आंदोलन शुरू किया, जिसमें उन्होंने अंग्रेजों के पूरी तरह से भारत छोड़ने पर जोर दिया। वर्धा में 14 जुलाई 1942 को अपनी कार्यकारिणी में कांग्रेस कार्य समिति ने ऐतिहासिक 'भारत छोड़ो' प्रस्ताव पारित किया, जिसमें सत्ता का भारतीयों को तत्काल हस्तांतरण एवं भारत छोड़ने की माँग की गई 18 अगस्त, 1942 को बंबई में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया, जिसमें पूरे देश में व्यापक पैमाने पर एक अहिसक जन संघर्ष का आह्वान किया गया। इसी अवसर पर गाँधी जी ने प्रसिद्ध 'करो या मरो' नारा दिया था। 'भारत छोड़ो' के इस आह्वान ने देश के अधिकतर हिस्सों में राज्य व्यवस्था को ठप्प कर दिया, लोग स्वतः ही आंदोलन में कूद पड़े। लोगों ने हड़तालें कीं और राष्ट्रीय गीतों एवं नारों के साथ प्रदर्शन किए एवं जुलूस निकाले। यह आंदोलन वास्तव में एक जन आंदोलन था जिसमें छात्र, मजदूर और किसान जैसे हजारों साधारण लोगों ने हिस्सा लिया। इसमें नेताओं की सक्रिय भागीदारी भी देखी गई जिसमें जयप्रकाश नारायण, अरूणा आसफ अली एवं राम मनोहर लोहिया और बहुत सारी महिलाएं जैसे बंगाल से मातागिनी हाजरा असम से कनकलता बरूआ और उड़ीसा से रमा देवी थी। अंग्रेजों द्वारा अत्यधिक बल प्रयोग बावजूद इसे दबाने में एक वर्ष से अधिक समय लग गया। इस आंदोलन ने भारतीयों के मन अंग्रेज शासन का खौफ कम कर दिया।
